राssस्ते का पत्थर
किस्मत ने मुझे बना दिया
जो राsस्ते से गुज़रा
एक ठोकर लगा गया
रास्ते का पत्थर



जी रहा हू ,हां जी रहा हू मैं,

 क्यो की मौत नहीं आती...
मौत नही आती,
क्यो की सजा खत्म नहीं होती....

 सजा खत्म नहीं होती,

क्यो की अनगिनत है पाप मेरे
 कोइ नहीं जो कहे मुझे 'आप मेरे'

दौड लगी है मुझसे मेरा 

सब छिननेवालो की

होड लगी है मुझसे मेरा

सब  नोचनेवालो की


सब्र !अब करु तो करु कितना 

कब्र भी ना जब समझे अपना ।

राह में काटे है,या काटो में राह,

ना कभी समझ में आया

ना किसीने समझाया ।


जीवन है आजतक पुरा उलझा 

जिसमे कुछ भी ना मुझसे सुलझा ।

अंधेरा घना सभी और है छाया 

ना मनचाहा कुछ मैने है पाया ।



माफ करना जरूरी है।
करना भी चाहिए।
यह आपके लिये भी जरूरी है।
पर जिस कारण माफ किया वो फिरसे आपके साथ ना हो.........‌
फिर उसी वजह से किसी को माफ करने की नौबत आपपर ना आए!

S.Leeladhar


अपेक्षा उपेक्षे ला जन्म देते आणी उपेक्षा असंतोषाला, असंतोष कलहास निमंत्रण देतो तर कलह वियोगा चे कारण ठरतो.
एस.लीलाधर



मन मेरा
बचपन से है दुश्मन मेरा
अधुरा, निकम्मा मन मेरा...
इसने उसने सबने छेडा
कइ बार मैने खुद तोडा....
उसने लेकीन साथ ना छोडा
ऐसा है,जुलमी, मन मेरा......
रोते बिलगते.. हात फैलवाता
निर्लज्जता से... भीख मंगवाता
तन झुकवाता.. मुझे हराता
बेशर्म सा है मन मेरा.....

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S.Leeladhar




जीवन ही मुर्खाने लिहिलेली कादंबरी आहे. कथानकात निरर्थक मोह, धडपड,श्रम, आरडाओरड आणि वादविवाद यांचे कंटाळवाणे विवरण असते.

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एस.लीलाधर






किसी ने मुझे पुछा आप स्टेटस क्यू नही रखते?

मैने कहा,"जो चीज मेरे पास है ही नहीं उसे कैसे रखू? 

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एस.लीलाधर





एक खिलौना बन गया दुनिया के मेले में
कोई खेले भीड़ में कोई अकेले में.......... पहेचान





कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं, नातों का क्या...
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या......      उपकार 





थक गया हूं , तन और मन  से।
गरीब हुआ हूं ,हर निर्धन से।
जाने कब निजात मिलेगी इस जीवन से!
हर कोशिश कि हार हुइ, जिंदगी बेकार हुइ।
हर राह गलत निकली, चाह,आह मे बदल गयी।
फसा पैर जीवन कि दलदल मे , निकाले ना निकले।

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एस.लीलाधर









गुनाह 

कोई भी इच्छा, आकांक्षा एवं कृती
जिससे दुसरे जीव को परेशानी हो
वो गुनाह  है।
गुनाह करनेकी ख्वाईश हर जीव मे होती है।
मनुष्य में इसे समाज और संस्कार दबाए रखते है।
ऐसा दबाव रखनेवाला समाज सुसंस्कृत
और मनुष्य ईन्सान कहलवाता है।
इस दबाव का हटना  समाज एवं ईन्सान
को विकृत बननेमे सहायक सिद्ध होता है।

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एस.लीलाधर

यादे


राजा ए राजा... सपनो मे आजा,

यादोको थोडा हिला जा।

उठा गिलास,चुटकी में पीजा..

जल्दी आजा,करुया मजा।

नहीं है तु,ना ग्रीनलैंड

रो रहा है मॅन,मन  का बैन्ड

जल्दी तु आजा अरे राजा

खुश मन कर जा।

लेके आजा नंबर वन ना कोइ दुजा,

आशा, अन्या,हेम्या न संजा,

आर इ अन

चंद्रवदन।

चलो मिले फिर एक बार

  • करने सजदा इन माझदा।

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एस.लीलाधर

I was alone...today at my residence.Trying to sleep...I had switched off all the bulbs. In that darkness past life sparkled before me through my subconscious mind. I used to feel proud on securing first rank at my graduation....post graduation... competitive exams...departmental trainings etc. Now when I look at life of alumni....co workers.....co executives , friends and no friends, I find myself nowhere. Still searching for something with open eyes in gruesome darkness. Am I satisfied or dissatisfied I know not. Is this life? ..... Or is it the punishment....only HE knows.
I did trust many and almost all proved me wrong in picking them up.

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